![]() |
| samajik web |
दहेज़ प्रथा
यह वास्तविकता में क्या है इसका कोई मापन सिद्ध नहीं किया जा सकता है क्यूंकि कुछ स्वार्थी लोगो के खुरापाती दिमाग की उपज का नाम ही दहेज़ है. इंसान की पैसे की भूख को लेकर जिस लालच का नाम है जो की वो स्वयं नहीं कमा सकता या कमाना नहीं चाहता और अपने पुत्र के ससुराल से धन की लालसा ही दहेज़ है ..यह वो है जो कि हर पिता अपनी पुत्रियों को अपनी स्वेच्छानुसार उपहार स्वरूप देते आये है. पिता के द्वारा अपनी पुत्री को दिया जाने वाला धन या अन्य सामान उपहार होता है किसी लड़के या दूल्हे के घरवालों का यह कोई अधिकार नहीं होता जिसे आज के समय में लोग बड़े हक़ से मांगते नजर आते है जिसका कोई मोल नहीं आँका जा सकता. हर पिता कि ये यह प्रबल इच्छा होती है कि उसकी पुत्री का ससुराल एक अच्छे घराने में हो जो उसे हर हर प्रकार कि खुशियों से परिपूर्ण रखे. उसकी पुत्री के जीवन में कभी कोई दुःख कोई परेशानी ना आये. जैसा कि विधि का विधान है कि हर इंसान को उसकी किस्मत में लिखा ही मिलता है सुख और दुःख जीवन के वो दो सत्य है जिसे कोई भी झुठला नहीं सकता है एक का जाना है तो दूसरे का आना है ये सब मेने इसीलिए कहा है कि इन्ही परस्तिथियो के फलस्वरूप दहेज़ की शुरुआत होती है हर पिता अपनी हैशियत से बढ़कर देने के पश्चात भी अपनी पुत्री के जीवन को लेकर दुखी है समाज के कुछ घिनोने ठेकेदार अपने पुत्रों का पालन पोषण इसीलिए करते है कि आने वाले वक़्त में अपने पुत्रों कि वह बढ़ चढ़कर बोली लगाकर बेच सके ! अपने पुत्रों का सौदा करने पश्चात भी उनके मन को शांति नहीं मिलती है वह हर वक़्त अपनी पुत्र वधु को दहेज़ के लिए प्रताड़ित करते रहते है और हर समय लड़की के परिवार वालो से अनावश्यक धन कि मांग करते है और इसमें उसके परिवार के सदश्य और उस लड़की का पति भी अपने परिवार के कुकर्मो में शामिल हो जाता है वो पति जिसने साथ फेरो का वचन देते वक़्त हर दुःख सुख में साथ निभाने का वादा करता है या निकाह कबूल करते वक़्त उसे अपना अपने जीवन के हर पल का भागीदार मानता है कबूल करता है.. तो मात्र कुछ धन की लालसा में वो सब रिश्ते वादों को भुलाकर अपने जीवन संगिनी पर जुल्मो की बारिश का आरम्भ कर देता है बस और इन्ही जुल्मो कि शिकार कई बेटियाँ अपना जीवन खो देती है उनके लालच कि आग में जलकर राख हो जाती है ! हर साल हजारो लड़कियां दहेज़ की प्रताड़ना को लेकर अपने जीवन को समाप्त करती नजर आती है तो क्यों ना हम इस बुराई इस कुरीति को ही जड़ो सहित निकाल बाहर फेंके जिस से आने वाले समय में और कोई बेटी लालची भेडियो के लालच कि बलि ना चढ़े ! इसके लिए समाज को कठोर नियम बनाने कि आवश्यकता है जिस से कभी भी किसी सज्जन पिता को अपने बेटी के लिए किसी प्रकार के धन कि व्यवस्था के बारे में विचार ना करना पड़े और वो किसी के सामने असहाय बनकर ना खड़ा हो !
![]() |
| samajik web |
अगर हमें अपनी बेटियों का कल अच्छा सुन्दर और सुखमयी बनाना है तो आओ हम मिल प्रण करें कि कभी किसी ना दहेज़ लेंगे और ना ही किसी को देंगे और ऐसा करने वालो को भी इस रास्ते पर जाने से रोकेंगे ॥
हरी ओम ॐ


टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें